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Uski Masrufiyat Mera Intzaar

सब उसकी., मसरूफियत में शामिल हैं...!! बस एक ., मुझ  बे-ज़रूरी के सिवा.....!! #Uski Masrufiyat 

अन्तिम चाहत

अपने आँगन में..
छोटे से पौधे पर खिली कली को जब देखा मैने,
मन मुस्कुराया, तन लहराया,
कल कैसा रंग लेकर खिलेगी यह।
आँगन मे किलकारियाँ भरेगी यह।
वह खिली, आँगन महका..
फूल बनी, भंवरे मंडराने लगे, मीठे गीत गाने लगे।
यह क्या, हर किसी की नज़र उस पर ही टिकने लगी।
उसकी सुन्दरता हर किसी के मन में बसने लगी,
समय बीता था,
ठीक वैसे ही, एक नई कली ने हम सबका मन जीता था,
उस पुराने फूल पर जब मेरी नजर गई, न वो सुन्दरता थी, न वो रंग थे,
न वो उमंग थी, न पहले जैसी तरंग थी।
मन सिहर उठा अन्दर से मेरा, हाय अब इसकी यह हालत !
कब मिट्टी में मिल जाऊँ, बस अब यही उसकी चाहत।
ऐसा ही तो है,
सिर्फ ऐसा ही तो है, दोस्तो!
हम सबका जीवन,
सुबहा का धीरे-2 सांझ में ढल जाना,
खिलते फूल का धीरे-2 मुरझा जाना,
जलती मोमबती का.. पिघल जाना,
खिलखिलाते बचपन का धीरे-2 बुढापे की ओर बढ़ जाना।
खत्म हो जाती है मन की हर चाहत तब,
किसी को ज़रूरत भी नही रहती हमारी तब
शरीर भी कमजोर पडने लगता है जब,
किसी के सहारे की जरूरत महसूस होती है तब।
जिनकी खुशियां ढूँढते-2 ..
अपने जीवन को कुर्बान कर दिया,
उन्ही के लिए अब यह जीवन भार लगने लगा
एक-2 पल घुट-2 कर यह जीवन चलने लगा,
फिर उसी मिट्टी में मिलने की चाहत यह जीवन करने लगा
फिर उसी मिट्टी में मिलने की चाहत........................
-- मिनाक्षी 

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